Jun 12, 2009

Shayari - Borrowed

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो वो क्या जो दंत हीन, विष रहित, विनीत, सरल हो
जब तक इंसान की जेब खाली हैज़िन्दगी एक गालिज़ गाली है

सच पूछो तो शर में ही, बसती है दिप्ति विनय की संधि-वचन संपूज्य उसी का, जिसमे शक्ति विजय की सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके, पीछे जब जगमग है

पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी डगमगाना भी ज़रूरी है जीने के लिए
गले लगाया था हमने सब ज़माने को हमीं पर उठती हैं अब उन्गैयाँ ज़माने की

हमने बना लिया है, नया फिर से आशियाँ यह बात जाकर किसी तूफ़ान से कह दो!
मकतबे इश्क में इक ढंग निराला देखा उनको छुट्टी न मिली, जिन्हें सबक याद हुआ ...

किसी के साथ दिल की हर ख़ुशी हो गई रुखसत बहारें जैसे कोई ले जाये गुलसितां से
निगाहे यार जो महेफिल में उत्त गयी होती तो खाली बज्म के सारे जाम भर गए होते

सलीका जिनको होता है ग़मे-दौरों में जीने का वो यूँ हर शीशे को पत्थर से टकराया नहीं करते

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