१३.११.९१
किया तुमने, शर्मिंदा मैं हूँ, और सिर उठता नहीं
क्या चाहा था क्या मिला, क्यों मैं मरता नहीं
दुनिया खेलती है नाटक ऐसे, जो सच्चे लगते हैं
अब मैं झूठे लोगों पर, भरोसा करता नहीं
मेहरबानी, मोहब्बत या मज़ाक किया यह तुमने
बस कशमकश में हूँ, दिल को सूझता नहीं
एक मुश्किल से निकाला, दूसरे में डाल दिया
वोह ज़ख्म दिया है तुमने, जो कभी भरता नहीं
बहुत भोला है तू 'पंकज', तेरा गुजर कैसे होगा
पानी में रहकर मगर से, तू क्यों डरता नहीं
Oct 10, 2007
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