Sep 19, 2007

तुम्हारा इंतज़ार

तुम्हारा इंतज़ार

२३.१०.१९९१

तुमसे मिलने की आस लिए नज़रें बिछाए हैं
टूटे हुए खिलोनों से यहाँ हम जीं बहलाये हैं

तेरी ग़ैर-हाजिरी का वोह उठा रहा है फायदा
बादलों से झांक कर, चन्दा मुहँ बनाये है

तडपाया, दिल बुझाया, नींद उडाया, रुलाया
जिन्दगी ने इन दिनों, तमाशे बहुत दिखाए हैं

शेरों में वो बात कहां के दर्द उभर आए
मत पूछो हमसे हमने, कैसे दिन बिताए हैं

गैरों का भी सुना है वो ख्याल रखते हैं
मान भी जाओ "पंकज", हम कहाँ पराये हैं

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